आजकादिनविशेष:-नारी जागरण की अग्रदूत : लक्ष्मीबाई केलकर,इतिहास स्मृतिदिवस= कोटली के अमर वीर बलिदानी 27th november DIN VISHESH WITH FULL INFORMATION

 



1.

बंगाल विभाजन के विरुद्ध हो रहे आन्दोलन के दिनों में छह जुलाई, 1905 को नागपुर में कमल नामक बालिका का जन्म हुआ। तब किसे पता था कि भविष्य में यह बालिका नारी जागरण के एक महान संगठन का निर्माण करेगी।


कमल के घर में देशभक्ति का वातावरण था। उसकी माँ जब लोकमान्य तिलक का अखबार ‘केसरी’ पढ़ती थीं, तो कमल भी गौर से उसे सुनती थी। केसरी के तेजस्वी विचारों से प्रभावित होकर उसने निश्चय किया कि वह दहेज रहित विवाह करेगी। इस जिद के कारण उसका विवाह 14 वर्ष की अवस्था में वर्धा में विवाह हुआ |


अगले 12 वर्ष में लक्ष्मीबाई ने छह पुत्रों को जन्म दिया। वे एक आदर्श व जागरूक गृहिणी थीं। मायके से प्राप्त संस्कारों का उन्होंने गृहस्थ जीवन में पूर्णतः पालन किया। उनके घर में स्वदेशी वस्तुएँ ही आती थीं। अपनी कन्याओं के लिए वे घर पर एक शिक्षक बुलाती थीं। वहीं से उनके मन में कन्या शिक्षा की भावना जन्मी और उन्होंने एक बालिका विद्यालय खोल दिया।


1932 में उनके पति का देहान्त हो गया। अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननद का दायित्व भी उन पर आ गया। लक्ष्मीबाई ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिये। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन्हीं दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आये परिवर्तन से लक्ष्मीबाई के मन में संघ के प्रति आकर्षण जगा और उन्होंने संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार से भेंट की।


डा. हेडगेवार ने उन्हें बताया कि संघ में स्त्रियाँ नहीं आतीं। तब उन्होंने 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया। सब उन्हें ‘वन्दनीया मौसीजी’ कहने लगे। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।


देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वे कराची, सिन्ध में थीं। उन्होंने सेविकाओं से हर परिस्थिति का मुकाबला करने और अपनी पवित्रता बनाये रखने को कहा। उन्होंने हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुँचने के प्रबन्ध भी किये।


मौसीजी ने अपने जीवनकाल में बाल मन्दिर, भजन मण्डली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किये। वे रामायण पर बहुत सुन्दर प्रवचन देतीं थीं। उनसे होने वाली आय से उन्होंने अनेक स्थानों पर समिति के कार्यालय बनवाये।


27 नवम्बर, 1978 वन्दनीय मौसीजी का देहान्त हुआ। राष्ट्र सेविका समिति आज विश्व के 25 से भी अधिक देशों में सक्रिय है





2.
आजकादिनविशेष=
इतिहास स्मृतिदिवस= 
कोटली के अमर वीर बलिदानी== 
२७.११.१९४८)======                             
नवनिर्मित पाकिस्तान ने १९४७में ही कश्मीर पर हमला कर दिया।देश रक्षा के दीवाने संघ के स्वयंसेवकों ने उनका प्रबल प्रतिकार किया।उन्होंने भारतीय सेना, शासन व जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह को इन षड्यन्त्रों की समय पर सूचना दी.इस गाथा का एक अमर अध्याय२७नव.१९४८को "कोटली"में लिखा गया,जो पाक अधिकृत कश्मीर में है.युद्ध के समय भारतीयवायुयानों द्वारा फेंकी गयी गोला- बारूद की कुछ पेटियां शत्रु सेना के पास जा गिरीं।उन्हें उठाकर लाने में बहुत जोखिम था।कमांडर अपने सैनिकों को गंवाना नहीं चाहते थे.सो संघ कार्यालय में सम्पर्क किया. उन दिनों स्थानीय पंजाब नैशनल बैंक के प्रबंधक श्री चंद्रप्रकाश "कोटली"में नगर कार्यवाह थे।उन्होंने कमांडर से पूछा कि कितने जवान चाहिए ? कमांडर ने कहा-आठ से काम चल जाएगा।चंद्रप्रकाश जी ने कहा-एक तो मैं हूं,बाकी सात को लेकर आधे घंटे में आता हूं।चंद्रप्रकाश जी ने जब स्वयंसेवकों को यह बताया,तो-३०युवक इसके लिए प्रस्तुत हो गये।कोई भी देश के लिए बलिदान होने के इस सुअवसर को गंवाना नहीं चाहता था।चंद्रप्रकाश जी ने बड़ी कठिनाई से सात को छांटा;बाकी कोआज्ञा’ देकर वापस भेजा।सबने आठों साथियों को सजल नेत्रों से विदा किया।सैनिक कमांडर ने उन आठों को पूरी बात समझाई.भारतीय और शत्रु सेना के बीच में एक नाला था,जिसके पार वे पेटियां पड़ी थीं।शाम का समय था।सर्दी मे भी स्वयंसेवकों ने तैरकर नाले को पार किया,पेटियां अपनी पीठ पर बांध लीं।फिर वे रेंगते हुए अपने क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे;पानी में हुई हलचल से शत्रु सैनिक सजग हुए और गोली चलाने लगे।पर स्वयंसेवक आगे बढ़ते रहे।तब चंद्रप्रकाश और वेदप्रकाश को गोली लगी।उस ओर ध्यान दिये बिना बाकी छह स्वयंसेवक नाला पारकर सकुशल अपनी सीमा में आ गये और कमांडर को पेटियां सौंप दी।अब अपने घायल साथियों को वापस लाने के वे फिर नाले को पार कर शत्रु सीमा में पहुंच गये।उनके पहुंचने तक उन दोनों वीर स्वयंसेवकों के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।स्वयंसेवकों ने उनकी लाश को अपनी पीठ पर बांधा और लौट चले।यह देख शत्रुओं ने गोलीवर्षा तेज कर दी।तो एक स्वयंसेवक और मारा गया।उसकी लाश को भी पीठ पर बांध लिया.तब तक एक अन्य गोली ने चौथे की कनपटी को बींध दिया।वह भी मातृभूमि हेतु शहीद हुआ।दल के वापस लौटने का दृश्य बड़ा कारुणिक था।चार बलिदानी स्वयंसेवक अपने चार घायल साथियों की पीठ पर बंधे थे।जब उन्हें चिता पर रखा गया, तो‘भारत माता की जय’के नारों से आकाश गूंज उठा। नगरवासियों ने फूलों की वर्षा की।इन स्वयंसेवकों का बलिदान रंग लाया।उन पेटियों से प्राप्त सामग्री से सैनिकों का उत्साह बढ़ गया।वे भूखे शेर की तरह शत्रु पर टूट पड़े।कुछ ही देर में शत्रुओं के पैर उखड़ गये और चिता की राख ठंडी होने से पहले ही पहाड़ी पर तिरंगा फहराने लगा।सेना के साथ प्रातः कालीन सूर्य ने भी अपनी पहली किरण चिता पर डाल स्वयंसेवकों को श्रद्धांजलि अर्पित की. सबको सादर वंदन.सादर नमन.



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